जीवन परिचय
"श्री 108 परम पूज्य मुनि कुंजर स.स.आचार्य आदिसागर महाराज का जीवन परिचय"
निर्दोष मुनि की अविच्छिन्न परम्परा के जन्मदाता का जन्म महाराष्ट्र के अंकली ग्राम में सन् 1866 में हुआ था। इनका नाम शिवगौड़ा था। ये महा पराक्रमी,शूरवीर,साहसी,दयालू,धर्मात्मा थे। पिता श्री सिद्धगौड़ा एवं माता अकाबाई थी।गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए राज्य करते थे।युवावस्था होने पर आऊबाई के साथ विवाह हो गया।कुछ समय पश्चात माता पिता की मृत्यु हो गई।जिससे संसार शरीर भोगों का चिंतन करने लगे और यथार्थता का ज्ञान प्राप्त हुआ।सन् 1906 में क्षुल्लक दीक्षा ली थी।7 वर्ष बाद मगसिर शुक्ला 2 को कुंथलगिरि सिध्दक्षेत्र पर जिनेन्द्र देव की साक्षी में मुनि दीक्षा ली।महातपस्वी और महाध्यानी गुरु थे ।नाम मुनि आदिसागर रक्खा गया।
ये जब भोज गाँव जाते थे,तब आचार्य शान्तिसागर जी गृहस्थ अवस्था में थे।वे इनके पास रात में रहते और प्रातः विहार के समय भोज में स्थित वेदगंगा,दूधगंगा नदी के किनारे ले जाते थे और वहाँ से कंधे पर बैठाकर इन्हें नदी पार कराते थे।एक दिन शान्तिसागर (श्रावक अवस्था में) बोले कि मैं आपको नदी पार कराता हूँ आप मुझे इस संसार समुद्र पार करा दीजियेगा । फलस्वरुप ऐलक दीक्षा ग्रहण की।
वे महान तपस्वी थे। 7 दिन उपवास करते थे आठवें दिन आहार लेते थे और शेष दिनो में ध्यान किया करते थे । आपको आचार्य , चारित्र चक्रवर्ती , मुनि कुंजर आदि अनेक पद दिये। आपके दिव्योपदेश से अनेक भव्य प्राणियों मुनि , आर्यिका ,ऐलक,क्षुल्लक,
क्षुल्लिका ,ब्रह्मचारी आदि भी दीक्षाऐं ग्रहण की। ज्ञानी,ध्यानी,तपस्वी पुण्यात्मा मुनि श्री 108 महावीरकीर्ति जी को अपना आचार्य पद देकर अपनी समाधि ऊदगांव कुंजवन में फागुन वदी 13 गुरूवार सन् 1943 में की।
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